Radio ka avishkar kisne kiya-2024 जानें इतिहास

Radio ka avishkar kisne kiya? जानें गुगलियम मार्कोनी के योगदान और रेडियो के विकास की रोचक कहानी। वायरलेस संचार की क्रांतिकारी खोज का इतिहास पढ़ें।

Radio ka avishkar kisne kiya- जानें इतिहास

गुग्लिल्मो मार्कोनी को रेडियो के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 1895 में पहला रेडियो सिग्नल स्थानांतरित करने में कामयाब रहे। 1896 में उन्होंने इसका पेटेंट भी कराया।

लेकिन, वास्तविक रूप से रेडियो तरंगों की खोज जर्मन वैज्ञानिक हेनरिक हर्ट्ज ने एक दशक पहले ही की थी। मार्कोनी, निकोला टेस्ला के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। उनकी पहली सफलता थी।

इसके अलावा, भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने भी रेडियो प्रसारण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

रेडियो के आरंभिक विकास का इतिहास

रेडियो का इतिहास 19वीं शताब्दी से शुरू हुआ। 1901 में, इटली के गुग्लीमो मार्कोनी ने तारों के बिना ध्वनि संचार का तरीका खोजा।

1906 में, ली फॉरेस्ट और जॉन फ्लेमिंग ने वैक्यूम ट्यूब को सुधारा। इससे वॉइस और म्यूजिक का स्पष्ट प्रसारण संभव हुआ।

जगदीश चन्द्र बसु और गुल्येल्मो मार्कोनी के योगदान

भारत में रेडियो प्रसारण की पहल जगदीश चन्द्र बोस ने की। गुल्येल्मो मार्कोनी ने 1900 में इंग्लैंड से अमेरिका में बेतार संदेश भेजा।

फ्रैंक कॉनर्ड और दुनिया का पहला कानूनी रेडियो स्टेशन

1920 में, फ्रैंक कॉनर्ड को दुनिया का पहला कानूनी रेडियो स्टेशन चलाने की अनुमति मिली। यह एक बड़ा कदम था।

रेडियो का आविष्कार किसने किया

इतालवी वैज्ञानिक गुग्लिल्मो मार्कोनी ने रेडियो का आविष्कार किया। उन्होंने 1895 में रेडियो तरंगों का सफल प्रसारण किया। इसके लिए उन्होंने पेटेंट भी कराया।

उनका योगदान विद्युत संचार क्रांति में बहुत महत्वपूर्ण था।

गुग्लिल्मो मार्कोनी और रेडियो तरंग प्रसारण

गुग्लिल्मो मार्कोनी ने रेडियो तरंग प्रसारण में बड़ा योगदान दिया। उन्होंने 1896 में रेडियो सिग्नल के स्थानांतरण का पेटेंट कराया।

उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें 1909 में नोबल पुरस्कार मिला।

उनके नेतृत्व में रेडियो प्रौद्योगिकी में कई बड़े बदलाव आए। रेडियो का व्यावसायिक उपयोग भी शुरू हुआ।

मार्कोनी के आविष्कार से विद्युत संचार क्षेत्र में क्रांति आई। रेडियो प्रौद्योगिकी का उपयोग दुनिया भर में बढ़ गया।

रेडियो तरंग प्रसारण

आज भारत में मोबाइल उपयोगकर्ताओं की संख्या 72 करोड़ से अधिक है। यह दिखाता है कि रेडियो प्रौद्योगिकी ने दुनिया भर में संचार को बदल दिया है।

भारत में रेडियो के विकास की गाथा

भारत में रेडियो की शुरुआत 1927 में हुई। उस समय देशभर में कई रेडियो क्लब बनाए गए। 1936 में, सरकार ने ‘इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ शुरू किया, जिसे बाद में आकाशवाणी कहा जाने लगा।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, भारत में रेडियो के सभी लाइसेंस रद्द कर दिए गए। ट्रांसमीटरों को सरकार के पास जमा करने के आदेश दिए गए।

इस समय, नरीमन प्रिंटर और उषा मेहता ने ‘नेशनल कांग्रेस रेडियो’ शुरू किया। यह रेडियो स्वतंत्रता आंदोलन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण था। भारत में रेडियो के विकास की यह गाथा हमारे देश की एक अनमोल धरोहर है।

वर्ष घटना
1921 भारत में पहली बार रेडियो प्रसारण की शुरुआत
1922 पहला रेडियो प्रसारण लाइसेंस जारी किया गया
1923 कोलकाता में पहला सार्वजनिक रेडियो प्रसारण
1927 इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (IBC) स्थापित की गई
1936 इम्पीरियल रेडियो ऑफ इंडिया का गठन

भारत में रेडियो का विकास

इस प्रकार, भारत में रेडियो का विकास एक लंबी और रोचक यात्रा रही है। आज, आकाशवाणी भारत का राष्ट्रीय प्रसारण संगठन है। यह देश के हर कोने में अपनी पहुंच बनाए हुए है।

विश्व युद्धों का रेडियो पर प्रभाव

द्वितीय विश्व युद्ध के समय, भारत में रेडियो के लाइसेंस रद्द कर दिए गए। सरकार ने ट्रांसमीटरों को अपने पास जमा करने का आदेश दिया। इस समय, नरीमन प्रिंटर और उषा मेहता ने ‘नेशनल कांग्रेस रेडियो’ शुरू किया।

यह रेडियो लगभग तीन महीने तक चला। इस पर गांधीजी का ‘भारत छोड़ो’ का नारा प्रसारित हुआ।

नेशनल कांग्रेस रेडियो और आजाद हिंद रेडियो

1942 में, ‘आजाद हिंद रेडियो’ की स्थापना हुई। यह पहले जर्मनी से और फिर सिंगापुर और रंगून से भारतीयों के लिए समाचार प्रसारित करता रहा।

इस पर सुभाष चंद्र बोस का प्रसिद्ध नारा “खून दो, स्वराज लो” प्रसारित हुआ। वह देश को आजादी के लिए प्रेरित करता था।

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